गुरुवार, 4 मई 2023

सनातनी पूजा पद्धधती - Rev 01

 सनातनी लोग किस तरह से करें पूजा कि  मिले सफलता, स्वास्थय, सामर्थ्य, सुरक्षा और सद्बुद्धि 

सनातन धर्म और आध्यात्मिक परंपराओं में पूजा पाठ को एक पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। इसमें भगवान और इष्ट देवताओं के प्रति भक्ति, प्रार्थना और दान आदि  शामिल हैं। पूजा करने के लिए हम अक्सर अपने आसपास के मंदिरों, देवालयों और तीर्थ स्थानों कि यात्रा करते है और अपने इष्ट के प्रति अपनी भक्ति और सेवा व समर्पण का संकल्प लेते है।  सनातन धर्म में कई गूढ़ नियम और अनुष्ठान हैं जो व्यक्ति की आध्यात्मिक सद्गुण साधने का माध्यम होते हैं। ये नियम साधना, तपस्या, और आत्मा के अद्वितीयता की दिशा में होते हैं। यहां कुछ गूढ़ नियमों का उल्लेख है:

गुरु-शिष्य सम्बन्ध: गुरु का महत्वपूर्ण स्थान है। व्यक्ति को अपने आध्यात्मिक गुरु का चयन करके उसके मार्गदर्शन में रहना चाहिए।

मौन (स्वयंसेवा): अवश्यक होने पर अपने आत्मा की शोध के लिए नियमित रूप से मौन रखना चाहिए।

प्रतिदिन साधना: आत्मा के विकास के लिए नियमित रूप से ध्यान, जप, और पूजा का अभ्यास करना चाहिए।

सात्विक आहार: शांति और आत्मा के उद्दीपन के लिए सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए।

ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का पालन करना, यानी ब्रह्मा की शक्ति को आत्मा में समर्पित करना, आत्मा के विकास में मदद कर सकता है।

ध्यान और समाधि: आत्मा के साक्षात्कार के लिए ध्यान और समाधि का अभ्यास करना चाहिए।

कर्मयोग: कर्मयोग का अभ्यास करना, यानी कर्म करते हुए आत्मा में ब्रह्मा को देखना, भी आत्मा के विकास में मदद कर सकता है।

अद्वैत भावना: आत्मा की अद्वैत भावना रखना, यानी आत्मा में भेद नहीं मानना, साधक को अद्वितीयता की अवस्था में ले जा सकता है।

सत्य और अहिंसा: सत्य और अहिंसा का पालन करना आत्मा के पुनर्निर्माण में सहायक हो सकता है।


सनातनी संसार मे मंदिर एक पवित्र स्थान माना जाता है जो पूरी तरह से ईश्वर की सेवा में समर्पित और शांत रहता है। यही नहीं, मन को शांत करने के लिए लोग भी इसी जगह बैठते हैं और ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करते हैं। पूजा-पाठ से घर में समृद्धि बनी रहती है, इसीलिए हमारे पूजा करने के लिए भी कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है। सनातन पूजा के मूल  नियमों का उल्लेख दिया गया है:

शुद्धि (पवित्रता): पूजा के लिए शुद्धि का अत्यंत महत्व है। व्यक्ति को स्नान करना चाहिए और शरीर, मन, और आत्मा की शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए।

आसन विधि: पूजा के लिए एक स्थिर और सुखद आसन का चयन करना चाहिए।

मूर्ति पूजा: अगर पूजा के लिए किसी दैवी या भगवान की मूर्ति का चयन किया जाता है, तो उसकी पूजा करते समय मूर्ति की पूर्व-पूजा करना चाहिए।

पूजा सामग्री: विशेष रूप से फूल, दीप, धूप, नैवेद्य, और जल को समर्पित करना चाहिए।

मंत्र जाप: पूजा के दौरान मंत्र जाप का महत्वपूर्ण स्थान है। यह ध्यान और आत्मा की ऊँचाईयों की प्राप्ति में सहायक है।

आरती, कीर्तन और भजन: पूजा के अंत में आरती अद्भुत भावनाओं और भक्ति की अभिव्यक्ति है। कीर्तन और भजन भक्तों का संग करने का उत्तम साधन है। 

व्रत और उपवास: कुछ पूजाएं व्रत और उपवास के साथ आती हैं। इसमें विशेष प्रकार की आहार विधियों का पालन करना होता है।

साधना और ध्यान: पूजा के अलावा साधना और ध्यान भी सनातन पूजा का हिस्सा है।


नित्य प्रतिदिन आप मंदिर या देवालय नहीं जा सकते, इसलिए सब सनातनी मनुष्यों को घर पर ही सुबह शाम पूजा करने का नियम है। अधिकांश सनतानियों के घर में पूजन के लिए छोटे छोटे मंदिर बने होते है जहां वो भगवान की नियमित पूजा करते है। 

बड़े मंदिरों मे पुजारी और संत समाज के प्रबुद्ध ज्ञानी लोग पूजा पद्धति मे पारंगत होते है और वे विधि विधान से इसका नित्य प्रतिदिन पालन करते है। लेकिन हममे में से अधिकांश लोग अज्ञानतावश, भुलवश या समय की कमी कि वजह से  अपने घर पर पूजन सम्बन्धी छोटे छोटे नियमों का पालन नहीं करते है। जिससे कि हमे  नित्य पूजन का सम्पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। हम आपको घर में पूजन सम्बन्धी कुछ ऐसे ही नियम बताएँगे जिनका पालन करने से हमे पूजन का श्रेष्ठ फल शीघ्र प्राप्त होगा। साथ ही पूजन के दौरान कुछ विशिष्ट वास्तु नियमों का पालन करना आपको समृद्धि, स्वास्थय, सफलता,  सामर्थ्य, सुरक्षा, सद्बुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा देगा। 


नियम 01: मंदिर तक पहुंचनी चाहिए सूर्य की रोशनी और ताजी हवा। 

घर में मंदिर ऐसे स्थान पर बनाया जाना चाहिए, जहां दिनभर में कभी भी कुछ देर के लिए सूर्य की रोशनी अवश्य पहुंचती हो। जिन घरों में सूर्य की रोशनी और ताजी हवा आती जाती रहती है, उन घरों के कई दोष स्वत: ही शांत हो जाते हैं। सूर्य की रोशनी से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, घर का उत्तर-पूर्व कोना पूजा के स्थान के लिए बहुत शुभ है। माना जाता है कि इस दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए घर की इसी दिशा मे मंदिर को स्थापित करना शुभ होता है। 


नियम 02: पूजन कक्ष के आसपास शौचालय नहीं होना चाहिए। 

घर के मंदिर के आसपास शौचालय होना भी अशुभ रहता है। अत: ऐसे स्थान पर पूजन कक्ष बनाएं, जहां आसपास शौचालय न हो और किसी भी प्रकार कि अशुद्धि या गंदगी या बदबू या बुरी आवाजें या अनर्गल शोर इत्यादि न हों। यदि किसी छोटे कमरे में पूजा स्थल बनाया गया है तो वहां कुछ स्थान खुला होना चाहिए, जहां कम से कम अपने परिवार के सभी सदस्य कुछ समय के लिए आसानी से बैठ सके।


नियम 03: पूजा करते समय किस दिशा की ओर होना चाहिए अपना मुंह?

ज्योतिषियों का मानना है कि विभिन्न दिशाएं अलग-अलग ऊर्जाओं और ब्रह्मांडीय शक्तियों से जुड़ी हैं। स्वयं को एक विशेष दिशा में संरेखित करना, इन ऊर्जाओं को एकजुट करने और आध्यात्मिक प्रयासों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का एक तरीका है। 

घर में पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह पूर्व  दिशा की ओर होगा तो बहुत शुभ रहता है। सूर्य के उगने की दिशा को पूर्व दिशा कहा जाता है, जो प्रकाश के उद्भव और एक नए दिन की शुरुआत का प्रतीक है।  और इस जगह से पूरी तरह से सूर्य की ऊर्जा प्रसारित होती है, इसलिए पूजा करते समय पूर्व की ओर देखना शुभ माना जाता है। सूर्य से जुड़ी शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा को पूर्व की ओर मुख करके पूजा करना हृदय को शुद्ध करने में मदद करता है। 

यदि यह संभव ना हो तो पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह उत्तर दिशा में होगा तब भी श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं। उत्तर दिशा धन और प्रचुरता से जुड़ी हुई है, इसलिए इस दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से घर में सदा सुख, धन और प्रचुरता रहती है।  इसके साथ ही धन के देवता कुबेर से उत्तर की ओर मुख करके पूजा करने से धन आता है। यदि आप इस दिशा में बैठकर पूजा करते हैं तो खुशहाली आती है। 

नियम 04: मंदिर में कैसी मूर्तियां रखनी चाहिए?

अपने घर के मंदिर में ज्यादा बड़ी मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। चुकि घर मे भगवान और देवताओ का छाया सवरूप ही रहना माना गया है, इसलिए  हमे बड़ी बड़ी मूर्तियों को रखने कि जरूरत नहीं होती है। अगर आपने भगवान कृष्ण या किसी अन्य देव को घर मे स्थापित करके प्राण प्रतिष्ठा की है तो अलग नियम है जो कि ज्यादा कठिन और निरन्तर सेवारत  रहने के लिए बने है, उनका ही पालन करना चाहिए।  आम लोगों को इसका अनुभव और ज्ञान नहीं होता है।  

शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि यदि हम मंदिर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो शिवलिंग हमारे अंगूठे के आकार से बड़ा नहीं होना चाहिए। क्योंकि शिवलिंग बहुत संवेदनशील होता है और इसी वजह से घर के मंदिर में छोटा सा शिवलिंग रखना ही शुभ होता है। अन्य देवी-देवताओं  या भगवान की मूर्तियां भी छोटे आकार की ही रखनी चाहिए। अधिक बड़ी मूर्तियां बड़े मंदिरों के लिए श्रेष्ठ रहती हैं, लेकिन घर के छोटे मंदिर के लिए छोटे-छोटे आकार की प्रतिमाएं श्रेष्ठ मानी गई हैं।

नियम 04.1: खंडित मूर्तियां ना रखें। 

शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।


नियम 05 :पूजन कक्ष में नहीं ले जाना चाहिए चीजें

मंदिर को हमेशा साफ, शुद्ध और स्वच्छ रखने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। घर में जिस स्थान पर मंदिर है, वहां चमड़े से बनी चीजें, जूते-चप्पल नहीं ले जाना चाहिए। घर मे इस्तेमाल होने वाली आम वस्तुओं और चीजों को मंदिर के आसपास न रखें। पूजन कक्ष में पूजा से संबंधित सामग्री ही रखना चाहिए। अन्य कोई वस्तु रखने से बचना चाहिए।

हम सभी पूजा के कमरे में अपने इष्ट की तस्वीर भी लगाते हैं। लेकिन वे किस मुद्रा में हैं, यह भी देखना चाहिए। जैसे कि, जब आप अपने इष्ट की तस्वीर लगाते हैं, तो उसके आसपास कोई रौद्र दृश्य नहीं होना चाहिए, जो बच्चों को डराता हो। उदहारण सवरूप, घर के पूजा के कमरे में चंडी, काली माता या ऐसी किसी भी देवी की तस्वीर नहीं लगाना चाहिए।

पूजा के कमरे में लोग अपने परिवार या बड़े-बुजुर्गों की तस्वीरें रखते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन्हें उनके बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलता रहेगा। लेकिन वास्तव में पूजा के कमरे में पारिवारिक तस्वीर नहीं होनी चाहिए। मंदिर में मृतकों और पूर्वजों के चित्र, बिजनेस से जुड़ी या फिर बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों के चित्र भी नहीं लगाना चाहिए। पूर्वजों के चित्र लगाने के लिए दक्षिण दिशा क्षेत्र रहती है, इसलिए घर में दक्षिण दिशा की दीवार पर मृतकों के चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन मंदिर में नहीं लगानी चाहिए।


नियम 06: पूजन और सामग्री से जुड़ी मुख्य बातें

कलश (पूजा कलश): पूजा कलश भी एक महत्वपूर्ण सामग्री है जो पूजा के शुरुआत में स्थापित किया जाता है। इसमें पानी, सुपारी, कोकोनट, फूल, और धूप आदि रखे जाते हैं।

चंदन और कुंकुम: चंदन और कुंकुम भी पूजा के दौरान उपयोग होते हैं, जो आत्मा के साथ समर्पित होते हैं और श्रीवत्स और तिलक के रूप में भी उपयोग हो सकते हैं। इन्ही से सभी भक्तों को तिलक लगाया जाता है। 

फूल और जल: फूल पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह ईश्वर के प्रति भक्ति का प्रतीक है। कुछ विशेष फूलों का उपयोग भी किया जाता है, जैसे कि चम्पा, रातरानी, रोज़, गुलाब, गेंदा, और कनेर आदि।  पूजा में कभी भी बासी फूल, पत्ते अर्पित नहीं करना चाहिए। स्वच्छ और ताजे जल का ही उपयोग करें। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि तुलसी के पत्ते और गंगाजल कभी बासी नहीं माने जाते हैं, अत: इनका उपयोग कभी भी किया जा सकता है। शेष सामग्री ताजी ही उपयोग करनी चाहिए। यदि कोई फूल सूंघा हुआ है या खराब है तो वह भगवान को अर्पित न करें।

नियम 06.1: फूल चढाने सम्बन्धी नियम

सदैव दाएं हाथ की अनामिका एवं अंगूठे की सहायता से फूल अर्पित करने चाहिए। चढ़े हुए फूल को अंगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारना चाहिए। फूल की कलियों को चढ़ाना मना है, किंतु यह नियम कमल के फूल और  तुलसी कि मंजरी पर लागू नहीं है।

नियम 06.2: तुलसी चढाने सम्बन्धी नियम -

तुलसी के बिना ईश्वर की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंगल, शुक्र, रवि, अमावस्या, पूर्णिमा, द्वादशी और रात्रि और संध्या काल में तुलसी दल नहीं तोडऩा चाहिए।तुलसी तोड़ते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक है।

दीपक (लाम्प): दीपक आत्मा के अज्ञान को दूर करने और ज्ञान की प्रकाश में मदद करने के लिए प्रयुक्त होता है।

धूप: धूप से पूजा का वातावरण पवित्र होता है और इससे ईश्वर की आत्मा को समर्पित करने का भाव बना रहता है।

नैवेद्य (प्रसादम): नैवेद्य का अर्थ होता है ईश्वर को अन्न और भोजन से समर्पित करना। यह पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इसी नैवेद्य  को सब बाद मे प्रसादम के रूप मे ग्रहण करते है। 

नियम 06.3: पूजन के बाद पूरे घर में कुछ देर बजाएं घंटी-

यदि घर में मंदिर है तो हर रोज सुबह और शाम पूजन अवश्य करना चाहिए। पूजन के समय घंटी अवश्य बजाएं, साथ ही एक बार पूरे घर में घूमकर भी घंटी बजानी चाहिए। ऐसा करने पर घंटी की आवाज से नकारात्मकता नष्ट होती है और सकारात्मकता बढ़ती है।

नियम 06.4: रोज रात को मंदिर पर ढंकें पर्दा

रोज रात को सोने से पहले मंदिर को पर्दे से ढंक देना चाहिए। जिस प्रकार हम सोते समय किसी प्रकार का व्यवधान पसंद नहीं करते हैं, ठीक उसी भाव से मंदिर पर भी पर्दा ढंक देना चाहिए। जिससे भगवान के विश्राम में बाधा उत्पन्न ना हो।


नियम 07: सभी मुहूर्त में करें गौमूत्र का ये उपाय-

वर्षभर में जब भी श्रेष्ठ मुहूर्त आते हैं, तब पूरे घर में गौमूत्र का छिड़काव करना चाहिए। गौमूत्र के छिड़काव से पवित्रता बनी रहती है और वातावरण सकारात्मक हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार गौमूत्र बहुत चमत्कारी होता है और इस उपाय घर पर दैवीय शक्तियों की विशेष कृपा होती है।