मास्साब का स्कूटर
चतुर्वेदी जी, पेशे से प्राइमरी अध्यापक थे। कस्बे से विद्यालय की दूरी महज़ 9 किलोमीटर थी। एकदम वीराने में था उनका विद्यालय।
कस्बे से वहाँ तक पहुंचने का साधन यदा कदा ही मिलता था, तो अक्सर लिफ्ट मांग कर ही काम चलाना पड़ता था और न मिले तो प्रभु के दिये दो पैर, भला किस दिन काम आएंगे।
"कैसे उजड्ड वीराने में विद्यालय खोल धरा है सरकार ने, इससे भला तो चुंगी पर परचून की दुकान खोल लो।"
लिफ्ट मांगते, साधन तलाशते चतुर्वेदी जी रोज यही सोचा करते।
धीरे धीरे कुछ जमापूंजी इकठ्ठा कर, उन्होंने एक स्कूटर ले लिया। बिलकुल नया चमचमाता स्कूटर।
स्कूटर लेने के साथ ही उन्होंने एक प्रण लिया कि वो कभी किसी को लिफ्ट के लिए मना न करेंगें।।
आखिर वो जानते थे जब कोई लिफ्ट को मना करे तो कितनी शर्मिंदगी महसूस होती है।
अब चतुर्वेदी जी रोज अपने चमचमाते स्कूटर से विद्यालय जाते, और रोज कोई न कोई उनके साथ जाता। लौटते में भी कोई न कोई मिल ही जाता।
एक रोज लौटते वक्त एक व्यक्ति परेशान सा लिफ्ट के लिये हाथ फैलाये था, , अपनी आदत अनुसार चतुर्वेदी जी ने स्कूटर रोक दिया। वह व्यक्ति पीछे बैठ गया।
थोड़ा आगे चलते ही उस व्यक्ति ने चाकू निकाल चतुर्वेदी जी की पीठ पर लगा दिया।
"जितना रुपया है वो, और ये स्कूटर मेरे हवाले करो।" व्यक्ति बोला।
चतुर्वेदी जी की सिट्टी पिट्टी गुम, डर के मारे स्कूटर रोक दिया। पैसे तो पास में ज्यादा थे नहीं, पर प्राणों से प्यारा, पाई पाई जोड़ कर खरीदा स्कूटर तो था।
"एक निवेदन है," स्कूटर की चाभी देते हुए चतुर्वेदी जी बोले ।
"क्या?" वह व्यक्ति बोला।
"यह कि तुम कभी किसी को ये मत बताना कि ये स्कूटर तुमने कहाँ से और कैसे चोरी किया, विश्वास मानो मैं भी रपट नहीं लिखउँगा।" चतुर्वेदी जी बोले।
"क्यों?" व्यक्ति हैरानी से बोला।
"यह रास्ता बहुत उजड्ड है, निरा वीरान | सवारी मिलती नहीं, उस पर ऐसे हादसे सुन आदमी लिफ्ट देना भी छोड़ देगा।" चतुर्वेदी जी बोले।
व्यक्ति का दिल पसीजा, उसे चतुर्वेदी जी भले मानुष प्रतीत हुए, पर धंधा तो धंधा होता है। 'ठीक है कहकर' वह व्यक्ति स्कूटर ले उड़ा।
अगले दिन चतुर्वेदी जी सुबह सुबह अखबार उठाने दरवाजे पर आए, दरवाजा खोला तो स्कूटर सामने खड़ा था। चतुर्वेदी जी की खुशी का ठिकाना न रहा, दौड़ कर गए और अपने स्कूटर को बच्चे जैसा प्यार लगे, देखा तो उसमें एक कागज भी लगा था।
"मास्साब, यह मत समझना कि तुम्हारी बातें सुन मेरा हृदय पिघल गया।
कल मैं तुमसे स्कूटर लूट उसे कस्बे ले गया, सोचा कबाड़ी वाले के पास बेच दूँ।
"अरे ये तो मास्साब का स्कूटर है। " इससे पहले मैं कुछ कहता कबाड़ी वाला बोला......
"अरे, मास्साब ने मुझे बाजार कुछ काम से भेजा है।" कहकर मैं बाल बाल बचा। परन्तु शायद उस व्यक्ति को मुझ पर शक सा हो गया था।
फिर मैं एक हलवाई की दुकान गया, जोरदार भूख लगी थी तो कुछ सामान ले लिया। "अरे ये तो मास्साब का स्कूटर है।" वो हलवाई भी बोल पड़ा।
"हाँ, उन्हीं के लिये तो ये सामान ले रहा हूँ, घर में कुछ मेहमान आये हुए हैं।" कहकर मैं जैसे तैसे वहां से भी बचा।
फिर मैंने सोचा कस्बे से बाहर जाकर कहीं इसे बेचता हूँ। शहर के नाके पर एक पुलिस वाले ने मुझे पकड़ लिया।
"कहाँ, जा रहे हो और ये मास्साब का स्कूटर तुम्हारे पास कैसे।" वह मुझ पर गुर्राया। किसी तरह उससे भी बहाना बनाया।
"हे, मास्साब तुम्हारा यह स्कूटर है या अमिताभ बच्चन। सब इसे पहचानते हैं। आपकी अमानत मैं आपके हवाले कर रहा हूँ, इसे बेचने की न मुझमें शक्ति बची है न हौसला। आपको जो तकलीफ हुई उस एवज में स्कूटर का टैंक फुल करा दिया है।"
पत्र पढ़ चतुर्वेदी जी मुस्कुरा दिए, और बोले। "कर भला तो हो भला।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
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