रेनू की शादी हुये, पाँच साल हो गये थे.
उसके पति थोड़ा कम बोलते थे, पर बड़े सुशील और संस्कारी थे। माता-पिता जैसे सास, ससुर और एक छोटी सी ननद, और एक नन्ही सी परी, भरा पूरा परिवार था, दिन खुशी से व्यतीत हो रहा था।
आज रेनू बीते दिनों को लेकर बैठी थी, कैसे उसके पिताजी ने बिना माँगे 30 लाख रूपये, अपने दामाद के नाम कर दिये, जिससे उसकी बेटी खुश रहे, कैसे उसके माता-पिता ने बड़ी धूमधाम से उसकी शादी की, बहुत ही आनंदमय तरीके से रेनू का विवाह हुआ था।
खैर बात ये नहीं थी, बात तो ये थी कि रेनू के बड़े भाई ने, अपने माता-पिता को घर से निकाल दिया था। क्योंकि पैसे तो उनके पास बचे नहीं थे, जितने थे उन्होने रेनू की शादी में लगा दिये थे, फिर भला बच्चे माँ-बाप को क्यूँ रखने लगे?
रेनू के माता-पिता एक मंदिर में रूके थे। रेनू आज उनसे मिल के आयी थी, और बड़ी उदास रहने लगी थी। आखिर लड़की थी, अपने माता-पिता के लिए कैसे दुख नहीं होता? कितने नाजों से पाला था, उसके पिताजी ने बिल्कुल अपनी गुडिया बनाकर रखा था आज वही माता-पिता मंदिर के किसी कोने में भूखे प्यासे पड़े थे।
रेनू अपने पति से बात करना चाहती थी। कि क्या वो अपने माता पिता को घर ले आए। पर वहाँ हिम्मत नहीं कर पा रही थी, क्योंकि उनके पति कम बोलते थे, अधिकतर चुप रहते थे।
जैसे तैसे रात हुई और रेनू के पति व पूरा परिवार खाने के टेबल पर बैठा था। रेनू की आंखें सहमी थी, उसने डरते हुये अपने पति से कहा- "सुनिये जी! भाईया- भाभी ने मम्मी-पापा को घर से निकाल दिया है। वो मंदिर में पड़े हैं, आप कहें तो उनको घर ले आऊं।"
रेनू के पति ने कुछ नहीं कहा, और खाना खत्म कर के अपने कमरे में चला गया, सब लोग अभी तक खाना खा रहे थे, पर रेनू के मुख से एक निवाला भी नहीं उतरा था, उसे बस यही चिंता सता रही थी, अब क्या होगा ? इन्होने भी कुछ नहीं कहा, रेनू रुहाँसी सी आंख लिए सबको खाना परोस रही थी।
थोड़ी देर बाद रेनू के पति कमरे से बाहर आए और रेनू के हाथ में नोटों का बंडल देते हुये कहा, इससे मम्मी-डैडी के लिए एक घर खरीद दो, और उनसे कहना, वो किसी बात की फ्रिक ना करे, मैं हूं।
रेनू ने बात काटते हुये कहा - "आपके पास इतने पैसे कहां से आए जी??"
रेनू के पति ने कहा - "ये तुम्हारे पापा के दिये गये ही पैसे हैं।" "मेरे नहीं थे, इसलिए मैंने इस्तेमाल नहीं किए।"
रेनू के सास-ससुर अपने बेटे को गर्व भरी नजरों से देखने लगे, और उनके बेटे ने भी उनसे कहा- "अम्मा जी बाबूजी सब ठीक है ना??"
उसके अम्मा - बाबूजी ने कहा "बड़ा नेक ख्याल है बेटा, हम तुम्हें बचपन से जानते हैं, तुझे पता है, अगर बहू अपने माता-पिता को घर ले आयी, तो उनके माता-पिता शर्म से सर नहीं उठा पाएंगे, की बेटी के घर में रह रहें, और जी नहीं पाएंगे.
इसलिए तुमने अलग घर दिलाने का फैसला किया है, और रही बात इस दहेज के पैसे की, तो हमें कभी इसकी जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि तुमने कभी हमें किसी चीज की कमी होने नहीं दी, खुश रहो बेटा कहकर रेनू और उसके पति को छोड़ सब सोने चले गये ।
रेनू के पति ने फिर कहा - "अगर और तुम्हे पैसों की जरूरत हो तो मुझे बताना, और अपने माता- पिता को बिल्कुल मत बताना घर खरीदने को पैसे कहाँ से आए, कुछ भी बहाना कर देना, वरना वो अपने को दिल ही दिल में कोसते रहेंगे।
चलो अच्छा अब मैं सोने जा रहा हूं, मुझे सुबह दफ्तर जाना है, रेनू का पति कमरे में चला गया।
और रेनू खुद को कोसने लगी, मन ही मन ना जाने उसने क्या-क्या सोच लिया था, मेरे पति ने दहेज के पैसे लिए हैं, क्या वो मदद नहीं करेंगे, करना ही पड़ेगा, वरना मैं भी उनके माँ-बाप की सेवा नहीं करूंगी.
रेनू सब समझ चुकी थी, कि उसके पति कम बोलते हैं, पर उससे ज्यादा कहीं समझते हैं। रेनू उठी और अपने पति के पास गयी, माफी मांगने, उसने अपने पति से सब बता दिया।
उसके पति ने कहा - "कोई बात नही होता हैं, तुम्हारे जगह मैं भी होता तो यही सोचता।"
रेनू की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, एक तरफ उसके माँ-बाप की परेशानी दूर.. दूसरी तरफ, उसके पति ने माफ कर दिया।
जय जय श्री राधे
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