गुरुवार, 4 मई 2023

सनातनी पूजा पद्धधती - Rev 01

 सनातनी लोग किस तरह से करें पूजा कि  मिले सफलता, स्वास्थय, सामर्थ्य, सुरक्षा और सद्बुद्धि 

सनातन धर्म और आध्यात्मिक परंपराओं में पूजा पाठ को एक पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। इसमें भगवान और इष्ट देवताओं के प्रति भक्ति, प्रार्थना और दान आदि  शामिल हैं। पूजा करने के लिए हम अक्सर अपने आसपास के मंदिरों, देवालयों और तीर्थ स्थानों कि यात्रा करते है और अपने इष्ट के प्रति अपनी भक्ति और सेवा व समर्पण का संकल्प लेते है।  सनातन धर्म में कई गूढ़ नियम और अनुष्ठान हैं जो व्यक्ति की आध्यात्मिक सद्गुण साधने का माध्यम होते हैं। ये नियम साधना, तपस्या, और आत्मा के अद्वितीयता की दिशा में होते हैं। यहां कुछ गूढ़ नियमों का उल्लेख है:

गुरु-शिष्य सम्बन्ध: गुरु का महत्वपूर्ण स्थान है। व्यक्ति को अपने आध्यात्मिक गुरु का चयन करके उसके मार्गदर्शन में रहना चाहिए।

मौन (स्वयंसेवा): अवश्यक होने पर अपने आत्मा की शोध के लिए नियमित रूप से मौन रखना चाहिए।

प्रतिदिन साधना: आत्मा के विकास के लिए नियमित रूप से ध्यान, जप, और पूजा का अभ्यास करना चाहिए।

सात्विक आहार: शांति और आत्मा के उद्दीपन के लिए सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए।

ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का पालन करना, यानी ब्रह्मा की शक्ति को आत्मा में समर्पित करना, आत्मा के विकास में मदद कर सकता है।

ध्यान और समाधि: आत्मा के साक्षात्कार के लिए ध्यान और समाधि का अभ्यास करना चाहिए।

कर्मयोग: कर्मयोग का अभ्यास करना, यानी कर्म करते हुए आत्मा में ब्रह्मा को देखना, भी आत्मा के विकास में मदद कर सकता है।

अद्वैत भावना: आत्मा की अद्वैत भावना रखना, यानी आत्मा में भेद नहीं मानना, साधक को अद्वितीयता की अवस्था में ले जा सकता है।

सत्य और अहिंसा: सत्य और अहिंसा का पालन करना आत्मा के पुनर्निर्माण में सहायक हो सकता है।


सनातनी संसार मे मंदिर एक पवित्र स्थान माना जाता है जो पूरी तरह से ईश्वर की सेवा में समर्पित और शांत रहता है। यही नहीं, मन को शांत करने के लिए लोग भी इसी जगह बैठते हैं और ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करते हैं। पूजा-पाठ से घर में समृद्धि बनी रहती है, इसीलिए हमारे पूजा करने के लिए भी कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है। सनातन पूजा के मूल  नियमों का उल्लेख दिया गया है:

शुद्धि (पवित्रता): पूजा के लिए शुद्धि का अत्यंत महत्व है। व्यक्ति को स्नान करना चाहिए और शरीर, मन, और आत्मा की शुद्धि का ध्यान रखना चाहिए।

आसन विधि: पूजा के लिए एक स्थिर और सुखद आसन का चयन करना चाहिए।

मूर्ति पूजा: अगर पूजा के लिए किसी दैवी या भगवान की मूर्ति का चयन किया जाता है, तो उसकी पूजा करते समय मूर्ति की पूर्व-पूजा करना चाहिए।

पूजा सामग्री: विशेष रूप से फूल, दीप, धूप, नैवेद्य, और जल को समर्पित करना चाहिए।

मंत्र जाप: पूजा के दौरान मंत्र जाप का महत्वपूर्ण स्थान है। यह ध्यान और आत्मा की ऊँचाईयों की प्राप्ति में सहायक है।

आरती, कीर्तन और भजन: पूजा के अंत में आरती अद्भुत भावनाओं और भक्ति की अभिव्यक्ति है। कीर्तन और भजन भक्तों का संग करने का उत्तम साधन है। 

व्रत और उपवास: कुछ पूजाएं व्रत और उपवास के साथ आती हैं। इसमें विशेष प्रकार की आहार विधियों का पालन करना होता है।

साधना और ध्यान: पूजा के अलावा साधना और ध्यान भी सनातन पूजा का हिस्सा है।


नित्य प्रतिदिन आप मंदिर या देवालय नहीं जा सकते, इसलिए सब सनातनी मनुष्यों को घर पर ही सुबह शाम पूजा करने का नियम है। अधिकांश सनतानियों के घर में पूजन के लिए छोटे छोटे मंदिर बने होते है जहां वो भगवान की नियमित पूजा करते है। 

बड़े मंदिरों मे पुजारी और संत समाज के प्रबुद्ध ज्ञानी लोग पूजा पद्धति मे पारंगत होते है और वे विधि विधान से इसका नित्य प्रतिदिन पालन करते है। लेकिन हममे में से अधिकांश लोग अज्ञानतावश, भुलवश या समय की कमी कि वजह से  अपने घर पर पूजन सम्बन्धी छोटे छोटे नियमों का पालन नहीं करते है। जिससे कि हमे  नित्य पूजन का सम्पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। हम आपको घर में पूजन सम्बन्धी कुछ ऐसे ही नियम बताएँगे जिनका पालन करने से हमे पूजन का श्रेष्ठ फल शीघ्र प्राप्त होगा। साथ ही पूजन के दौरान कुछ विशिष्ट वास्तु नियमों का पालन करना आपको समृद्धि, स्वास्थय, सफलता,  सामर्थ्य, सुरक्षा, सद्बुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा देगा। 


नियम 01: मंदिर तक पहुंचनी चाहिए सूर्य की रोशनी और ताजी हवा। 

घर में मंदिर ऐसे स्थान पर बनाया जाना चाहिए, जहां दिनभर में कभी भी कुछ देर के लिए सूर्य की रोशनी अवश्य पहुंचती हो। जिन घरों में सूर्य की रोशनी और ताजी हवा आती जाती रहती है, उन घरों के कई दोष स्वत: ही शांत हो जाते हैं। सूर्य की रोशनी से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, घर का उत्तर-पूर्व कोना पूजा के स्थान के लिए बहुत शुभ है। माना जाता है कि इस दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए घर की इसी दिशा मे मंदिर को स्थापित करना शुभ होता है। 


नियम 02: पूजन कक्ष के आसपास शौचालय नहीं होना चाहिए। 

घर के मंदिर के आसपास शौचालय होना भी अशुभ रहता है। अत: ऐसे स्थान पर पूजन कक्ष बनाएं, जहां आसपास शौचालय न हो और किसी भी प्रकार कि अशुद्धि या गंदगी या बदबू या बुरी आवाजें या अनर्गल शोर इत्यादि न हों। यदि किसी छोटे कमरे में पूजा स्थल बनाया गया है तो वहां कुछ स्थान खुला होना चाहिए, जहां कम से कम अपने परिवार के सभी सदस्य कुछ समय के लिए आसानी से बैठ सके।


नियम 03: पूजा करते समय किस दिशा की ओर होना चाहिए अपना मुंह?

ज्योतिषियों का मानना है कि विभिन्न दिशाएं अलग-अलग ऊर्जाओं और ब्रह्मांडीय शक्तियों से जुड़ी हैं। स्वयं को एक विशेष दिशा में संरेखित करना, इन ऊर्जाओं को एकजुट करने और आध्यात्मिक प्रयासों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का एक तरीका है। 

घर में पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह पूर्व  दिशा की ओर होगा तो बहुत शुभ रहता है। सूर्य के उगने की दिशा को पूर्व दिशा कहा जाता है, जो प्रकाश के उद्भव और एक नए दिन की शुरुआत का प्रतीक है।  और इस जगह से पूरी तरह से सूर्य की ऊर्जा प्रसारित होती है, इसलिए पूजा करते समय पूर्व की ओर देखना शुभ माना जाता है। सूर्य से जुड़ी शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा को पूर्व की ओर मुख करके पूजा करना हृदय को शुद्ध करने में मदद करता है। 

यदि यह संभव ना हो तो पूजा करते समय व्यक्ति का मुंह उत्तर दिशा में होगा तब भी श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं। उत्तर दिशा धन और प्रचुरता से जुड़ी हुई है, इसलिए इस दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से घर में सदा सुख, धन और प्रचुरता रहती है।  इसके साथ ही धन के देवता कुबेर से उत्तर की ओर मुख करके पूजा करने से धन आता है। यदि आप इस दिशा में बैठकर पूजा करते हैं तो खुशहाली आती है। 

नियम 04: मंदिर में कैसी मूर्तियां रखनी चाहिए?

अपने घर के मंदिर में ज्यादा बड़ी मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। चुकि घर मे भगवान और देवताओ का छाया सवरूप ही रहना माना गया है, इसलिए  हमे बड़ी बड़ी मूर्तियों को रखने कि जरूरत नहीं होती है। अगर आपने भगवान कृष्ण या किसी अन्य देव को घर मे स्थापित करके प्राण प्रतिष्ठा की है तो अलग नियम है जो कि ज्यादा कठिन और निरन्तर सेवारत  रहने के लिए बने है, उनका ही पालन करना चाहिए।  आम लोगों को इसका अनुभव और ज्ञान नहीं होता है।  

शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि यदि हम मंदिर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो शिवलिंग हमारे अंगूठे के आकार से बड़ा नहीं होना चाहिए। क्योंकि शिवलिंग बहुत संवेदनशील होता है और इसी वजह से घर के मंदिर में छोटा सा शिवलिंग रखना ही शुभ होता है। अन्य देवी-देवताओं  या भगवान की मूर्तियां भी छोटे आकार की ही रखनी चाहिए। अधिक बड़ी मूर्तियां बड़े मंदिरों के लिए श्रेष्ठ रहती हैं, लेकिन घर के छोटे मंदिर के लिए छोटे-छोटे आकार की प्रतिमाएं श्रेष्ठ मानी गई हैं।

नियम 04.1: खंडित मूर्तियां ना रखें। 

शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।


नियम 05 :पूजन कक्ष में नहीं ले जाना चाहिए चीजें

मंदिर को हमेशा साफ, शुद्ध और स्वच्छ रखने का निरंतर प्रयास करना चाहिए। घर में जिस स्थान पर मंदिर है, वहां चमड़े से बनी चीजें, जूते-चप्पल नहीं ले जाना चाहिए। घर मे इस्तेमाल होने वाली आम वस्तुओं और चीजों को मंदिर के आसपास न रखें। पूजन कक्ष में पूजा से संबंधित सामग्री ही रखना चाहिए। अन्य कोई वस्तु रखने से बचना चाहिए।

हम सभी पूजा के कमरे में अपने इष्ट की तस्वीर भी लगाते हैं। लेकिन वे किस मुद्रा में हैं, यह भी देखना चाहिए। जैसे कि, जब आप अपने इष्ट की तस्वीर लगाते हैं, तो उसके आसपास कोई रौद्र दृश्य नहीं होना चाहिए, जो बच्चों को डराता हो। उदहारण सवरूप, घर के पूजा के कमरे में चंडी, काली माता या ऐसी किसी भी देवी की तस्वीर नहीं लगाना चाहिए।

पूजा के कमरे में लोग अपने परिवार या बड़े-बुजुर्गों की तस्वीरें रखते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन्हें उनके बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलता रहेगा। लेकिन वास्तव में पूजा के कमरे में पारिवारिक तस्वीर नहीं होनी चाहिए। मंदिर में मृतकों और पूर्वजों के चित्र, बिजनेस से जुड़ी या फिर बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों के चित्र भी नहीं लगाना चाहिए। पूर्वजों के चित्र लगाने के लिए दक्षिण दिशा क्षेत्र रहती है, इसलिए घर में दक्षिण दिशा की दीवार पर मृतकों के चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन मंदिर में नहीं लगानी चाहिए।


नियम 06: पूजन और सामग्री से जुड़ी मुख्य बातें

कलश (पूजा कलश): पूजा कलश भी एक महत्वपूर्ण सामग्री है जो पूजा के शुरुआत में स्थापित किया जाता है। इसमें पानी, सुपारी, कोकोनट, फूल, और धूप आदि रखे जाते हैं।

चंदन और कुंकुम: चंदन और कुंकुम भी पूजा के दौरान उपयोग होते हैं, जो आत्मा के साथ समर्पित होते हैं और श्रीवत्स और तिलक के रूप में भी उपयोग हो सकते हैं। इन्ही से सभी भक्तों को तिलक लगाया जाता है। 

फूल और जल: फूल पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह ईश्वर के प्रति भक्ति का प्रतीक है। कुछ विशेष फूलों का उपयोग भी किया जाता है, जैसे कि चम्पा, रातरानी, रोज़, गुलाब, गेंदा, और कनेर आदि।  पूजा में कभी भी बासी फूल, पत्ते अर्पित नहीं करना चाहिए। स्वच्छ और ताजे जल का ही उपयोग करें। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि तुलसी के पत्ते और गंगाजल कभी बासी नहीं माने जाते हैं, अत: इनका उपयोग कभी भी किया जा सकता है। शेष सामग्री ताजी ही उपयोग करनी चाहिए। यदि कोई फूल सूंघा हुआ है या खराब है तो वह भगवान को अर्पित न करें।

नियम 06.1: फूल चढाने सम्बन्धी नियम

सदैव दाएं हाथ की अनामिका एवं अंगूठे की सहायता से फूल अर्पित करने चाहिए। चढ़े हुए फूल को अंगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारना चाहिए। फूल की कलियों को चढ़ाना मना है, किंतु यह नियम कमल के फूल और  तुलसी कि मंजरी पर लागू नहीं है।

नियम 06.2: तुलसी चढाने सम्बन्धी नियम -

तुलसी के बिना ईश्वर की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंगल, शुक्र, रवि, अमावस्या, पूर्णिमा, द्वादशी और रात्रि और संध्या काल में तुलसी दल नहीं तोडऩा चाहिए।तुलसी तोड़ते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक है।

दीपक (लाम्प): दीपक आत्मा के अज्ञान को दूर करने और ज्ञान की प्रकाश में मदद करने के लिए प्रयुक्त होता है।

धूप: धूप से पूजा का वातावरण पवित्र होता है और इससे ईश्वर की आत्मा को समर्पित करने का भाव बना रहता है।

नैवेद्य (प्रसादम): नैवेद्य का अर्थ होता है ईश्वर को अन्न और भोजन से समर्पित करना। यह पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इसी नैवेद्य  को सब बाद मे प्रसादम के रूप मे ग्रहण करते है। 

नियम 06.3: पूजन के बाद पूरे घर में कुछ देर बजाएं घंटी-

यदि घर में मंदिर है तो हर रोज सुबह और शाम पूजन अवश्य करना चाहिए। पूजन के समय घंटी अवश्य बजाएं, साथ ही एक बार पूरे घर में घूमकर भी घंटी बजानी चाहिए। ऐसा करने पर घंटी की आवाज से नकारात्मकता नष्ट होती है और सकारात्मकता बढ़ती है।

नियम 06.4: रोज रात को मंदिर पर ढंकें पर्दा

रोज रात को सोने से पहले मंदिर को पर्दे से ढंक देना चाहिए। जिस प्रकार हम सोते समय किसी प्रकार का व्यवधान पसंद नहीं करते हैं, ठीक उसी भाव से मंदिर पर भी पर्दा ढंक देना चाहिए। जिससे भगवान के विश्राम में बाधा उत्पन्न ना हो।


नियम 07: सभी मुहूर्त में करें गौमूत्र का ये उपाय-

वर्षभर में जब भी श्रेष्ठ मुहूर्त आते हैं, तब पूरे घर में गौमूत्र का छिड़काव करना चाहिए। गौमूत्र के छिड़काव से पवित्रता बनी रहती है और वातावरण सकारात्मक हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार गौमूत्र बहुत चमत्कारी होता है और इस उपाय घर पर दैवीय शक्तियों की विशेष कृपा होती है।



शुक्रवार, 31 मार्च 2023

रोचक जातक, सामाजिक व सनातन कथाएं 120

🌺🌺🌺"छत का पंखा"🌺🌺🌺

शाम को घर लौटते समय पिता का मन कुछ उद्विग्न सा था। बेटे का अब तक फोन नहीं आया था, तो क्या रिजल्ट आज भी नहीं निकला?

हो सकता है ना निकला हो, या क्या पता, निकला हो। फिर तो बेटे का फोन आना चाहिए था,तो क्या ??

बस! इससे आगे सोचने की ताब ना थी उनमें, दिल बैठता सा महसूस हुआ था।

इसी उधेड़बुन में घर पहुँचे तो पत्नी को आँगन में सोचों में गुम पाया।

"क्या बात है, चूल्हा नहीं जला अब तक?"

"बस, आग सुलगाने ही जा रही थी।"

"बेटे ने फोन किया था?"

"हाँ"

"रिजल्ट निकल गया उसका?"

"हाँ" -पत्नी ने संक्षिप्त जवाब दिया।

आगे कुछ पूछने की जरुरत नहीं थी। पास होता तो पत्नी उनके पूछने से पहले ही पूरी कथा सुना रही होती।

"विचलित तो बहुत होगा वो।"

"हाँ, पर आपको लेकर।"

"मुझे लेकर ?"

"कह रहा था, पापा का सपना तोड़ दिया।कर्जे के बोझ से दबे कैसे उन्होंने मुझे कोटा भेजा, मैं ही जानता हूँ।"

"अरे, तो क्या हुआ? हर बाप अपने बेटे के लिए ऐसा करता है।पागल कहीं का, फालतू बातें सोचता रहता है। और कुछ कहा क्या उसने?"

पत्नी की आँखों में आँसू आ गये- "कह रहा था, मन करता है कि पंखे से लटक जाऊँ।"

"अरे पागल! और तू मुझे अब बता रही है।"

घबराते हुए उन्होंने जल्दी से फोन लगाया बेटे को। दूसरी बार जाकर फोन लगा...

"अपनी माँ से क्या अंट-शंट बक रहा था?"

"कुछ भी तो नहीं पापा"

"और तेरी आवाज को क्या हुआ?  

हमेशा चहकता रहता था और आज इस तरह।"

"पापा, मुझे माफ करना।"

"माफ! तूने चोरी की, किसी का अहित किया?"

"नहीं पापा, मैं फिर से फेल हो गया।"

"तो?"

"आपका सपना टूट गया।"

"वो मेरा नहीं, तेरा सपना था पगले, मैं तो बस तेरी जरुरतें पूरी कर रहा हूँ।"

"फिर भी, कालिख तो पोत ही दी आपके चेहरे पे"

"बिल्कुल नहीं बेटे! तूने कुकर्म किये होते, किसी लड़की का शीलभंग किया होता, तब मेरे चेहरे पे कालिख पुतती। तू केवल फेल हुआ है, कागजी पढ़ाई में।"

"पर फेल होने का नतीजा तो आप जानते हैं ना पापा?"

"अच्छी तरह जानता हूँ। फेल होने का बस इतना ही परिणाम होगा कि तू कभी जीवन में इंजीनियर नहीं बनेगा।"

"ये कम है क्या पापा?"

"बहुत कम। इस विराट जीवन की उपलब्धि क्या केवल डॉक्टर, इंजीनियर या फिर क्लास वन का नौकर बनने में है। ये मात्र रोटी कमाने का जरिया भर है बेटे और जीवन में ईमानदारी से रोटी कमाने के हजारों तरीके हैं।"

"पर मैंने तो कुछ और सोचा था पापा"

"क्या?"

"यही, कि मैं वो काम करुंगा जिसपर आप गर्व करेंगे, समाज में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी।"

"मेरा गर्व तो तू है बेटे और आजतक तेरे बारे में कुछ भी बुरा नहीं सुनने को मिला मुझे किसी से। इससे अधिक प्रतिष्ठा और क्या होगी? "

"फिर भी....!"

"अरे क्या फिर भी।  ना तेरे बाबा किसी बड़े पद पर थे, ना मैं। तो क्या हमारे खानदान की नाक कट गयी, या हममें से किसी ने आत्महत्या कर ली।"

"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा पापा।"

"कुछ समझना भी नहीं है। तू इन सबको भुला और मन लगाकर पढ़। आगे ईश्वर ने जो तेरे भाग्य में लिखा है, वो होगा। और हाँ, दिवाली की छुट्टी में घर आ, हम मिलकर इकट्ठे सफाई करेंगे, खरीददारी करेंगे, दीये जलायेंगे।"

"हूँ"

"आ, इस बार तुझे खेत घुमाता हूँ। खूब मोर और हिरन देखने को मिलेंगे। मधुमक्खियों ने बगीचे में छत्ता भी लगाया है, उसमें से शहद निकालेंगे और हाँ, इस बार फूलों की खेती भी अच्छी हुई है। तितलियों के पीछे भी भागेंगे, देखना, बहुत मजा आता है इसमें।"

दूसरी ओर से बेटे की हँसी गूँजी--"क्या पापा, आप अभी भी बच्चों जैसी बातें करते हैं? "

"अच्छा! तो मेरा ही जन्मा, मुझे ही सयानापन सिखा रहा है!"

"तो सीख लीजिये ना, क्या हर्ज है?"

"सयानापन अपने साथ संताप लाता है बेटे। मेरी तरह बचपने को बचाये रख, जीने का इससे बेहतर तरीका और कुछ नहीं है।"

दूसरी तरफ बेटे ने चैन की एक लंबी साँस ली। जीवन का मर्म वो समझ चुका था। 

छत से लटकते पंखे से अब भय की आँधी नहीं बल्कि ठंडी हवा आ रही थी।


 हो सके तो इसे वायरल करें तो ताकि हम कब, कहां, किसका जीवन बचाने में इस मैसेज के माध्यम से सफल हो जाए ।


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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

।।जय जय श्री राधे।।

।।जय जय श्री राम।।

।।हर हर महादेव।।


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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

रोचक जातक, सामाजिक व सनातन कथाएं 003

मास्साब का स्कूटर

चतुर्वेदी जी, पेशे से प्राइमरी अध्यापक थे।  कस्बे से विद्यालय की दूरी महज़ 9 किलोमीटर थी।  एकदम वीराने में था उनका विद्यालय।

 कस्बे से वहाँ तक पहुंचने का साधन यदा कदा ही मिलता था, तो अक्सर लिफ्ट मांग कर ही काम चलाना पड़ता था और न मिले तो प्रभु के दिये दो पैर, भला किस दिन काम आएंगे।

"कैसे उजड्ड वीराने में विद्यालय खोल धरा है सरकार ने, इससे भला तो चुंगी पर परचून की दुकान खोल लो।"
 लिफ्ट मांगते, साधन तलाशते चतुर्वेदी जी रोज यही सोचा करते।

धीरे धीरे कुछ जमापूंजी इकठ्ठा कर, उन्होंने एक स्कूटर ले लिया। बिलकुल नया चमचमाता स्कूटर।

 स्कूटर लेने के साथ ही उन्होंने एक प्रण लिया कि वो कभी किसी को लिफ्ट के लिए मना न करेंगें।।
 आखिर वो जानते थे जब कोई लिफ्ट को मना करे तो कितनी शर्मिंदगी महसूस होती है।

अब चतुर्वेदी जी रोज अपने चमचमाते स्कूटर से विद्यालय जाते, और रोज कोई न कोई उनके साथ जाता। लौटते में भी कोई न कोई मिल ही जाता।

एक रोज लौटते वक्त एक व्यक्ति परेशान सा लिफ्ट के लिये हाथ फैलाये था, , अपनी आदत अनुसार चतुर्वेदी जी ने स्कूटर रोक दिया। वह व्यक्ति पीछे बैठ गया।

थोड़ा आगे चलते ही उस व्यक्ति ने चाकू निकाल चतुर्वेदी जी की पीठ पर लगा दिया।

"जितना रुपया है वो, और ये स्कूटर मेरे हवाले करो।" व्यक्ति बोला।

चतुर्वेदी जी की सिट्टी पिट्टी गुम, डर के मारे स्कूटर रोक दिया। पैसे तो पास में ज्यादा थे नहीं, पर प्राणों से प्यारा, पाई पाई जोड़ कर खरीदा स्कूटर तो था।

 "एक निवेदन है," स्कूटर की चाभी देते हुए चतुर्वेदी जी बोले ।

"क्या?" वह व्यक्ति बोला।

"यह कि तुम कभी किसी को ये मत बताना कि ये स्कूटर तुमने कहाँ से और कैसे चोरी किया, विश्वास मानो मैं भी रपट नहीं लिखउँगा।" चतुर्वेदी जी बोले।

"क्यों?" व्यक्ति हैरानी से बोला।

"यह रास्ता बहुत उजड्ड है, निरा वीरान | सवारी मिलती नहीं, उस पर ऐसे हादसे सुन आदमी लिफ्ट देना भी छोड़ देगा।"  चतुर्वेदी जी बोले।

व्यक्ति का दिल पसीजा, उसे चतुर्वेदी जी भले मानुष प्रतीत हुए, पर धंधा तो धंधा होता है। 'ठीक है कहकर' वह व्यक्ति स्कूटर ले उड़ा।

अगले दिन चतुर्वेदी जी सुबह सुबह अखबार उठाने दरवाजे पर आए, दरवाजा खोला तो स्कूटर सामने खड़ा था। चतुर्वेदी जी की खुशी का ठिकाना न रहा, दौड़ कर गए और अपने स्कूटर को बच्चे जैसा प्यार लगे, देखा तो उसमें एक कागज भी लगा था।

 "मास्साब, यह मत समझना कि तुम्हारी बातें सुन मेरा हृदय पिघल गया।

कल मैं तुमसे स्कूटर लूट उसे कस्बे ले गया, सोचा कबाड़ी वाले के पास बेच दूँ।
"अरे ये तो मास्साब का स्कूटर है। " इससे पहले मैं कुछ कहता कबाड़ी वाला बोला......

"अरे, मास्साब ने मुझे बाजार कुछ काम से भेजा है।" कहकर मैं बाल बाल बचा। परन्तु शायद उस व्यक्ति को मुझ पर शक सा हो गया था।

फिर मैं एक हलवाई की दुकान गया, जोरदार भूख लगी थी तो कुछ सामान ले लिया। "अरे ये तो मास्साब का स्कूटर है।" वो हलवाई भी बोल पड़ा।

"हाँ, उन्हीं के लिये तो ये सामान ले रहा हूँ, घर में कुछ मेहमान आये हुए हैं।" कहकर मैं जैसे तैसे वहां से भी बचा।

फिर मैंने सोचा कस्बे से बाहर जाकर कहीं इसे बेचता हूँ। शहर के नाके पर एक पुलिस वाले ने मुझे पकड़ लिया।

"कहाँ, जा रहे हो और ये मास्साब का स्कूटर तुम्हारे पास कैसे।" वह मुझ पर गुर्राया। किसी तरह उससे भी बहाना बनाया।

"हे, मास्साब तुम्हारा यह स्कूटर है या अमिताभ बच्चन। सब इसे पहचानते हैं। आपकी अमानत मैं आपके हवाले कर रहा हूँ, इसे बेचने की न मुझमें शक्ति बची है न हौसला। आपको जो तकलीफ हुई उस एवज में स्कूटर का टैंक फुल करा दिया है।"

पत्र पढ़ चतुर्वेदी जी मुस्कुरा दिए, और बोले। "कर भला तो हो भला।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
।।जय जय श्री राधे।।
।।जय जय श्री राम।।
।।हर हर महादेव।।

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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

Rahul Gandhi says he is British. How come he is MP then?


Video link on Rahul certifying himself as British  Citizen in Britain's  official  records. 

Our judiciary is very quick in taking self consideration  in sundry cases like Jalli Kattu or height of Matki on Ganesh Festival etc etc.

Will any body in judiciary take this up?


गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

#महारानी_जोधाबाई एक प्रचारित झूठ

#महारानी_जोधाबाई

जो कभी थी ही नहीं? लेकिन बड़ी सफाई से उनका अस्तित्व गढ़ा गया और हम सब झांसे में आ गए .... 
जब भी कोई हिन्दू राजपूत किसी मुग़ल की गद्दारी की बात करता है तो कुछ मुग़ल प्रेमियों द्वारा उसे जोधाबाई का नाम लेकर चुप कराने की कोशिश की जाती है!
बताया जाता है कि कैसे जोधा ने अकबर की आधीनता स्वीकार की या उससे विवाह किया! परन्तु अकबर कालीन किसी भी इतिहासकार ने जोधा और अकबर की प्रेम कहानी का कोई वर्णन नहीं किया है!
उन सभी इतिहासकारों ने अकबर की सिर्फ 5 बेगम बताई है!
1.सलीमा सुल्तान
2.मरियम उद ज़मानी
3.रज़िया बेगम
4.कासिम बानू बेगम
5.बीबी दौलत शाद
अकबर ने खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी किसी हिन्दू रानी से विवाह का कोई जिक्र नहीं किया। परन्तु हिन्दू राजपूतों को नीचा दिखाने के षड्यंत्र के तहत बाद में कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृत्यु के करीब 300 साल बाद 18 वीं सदी में “मरियम उद ज़मानी”, को जोधा बाई बता कर एक झूठी अफवाह फैलाई!

और इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेम कहानी के झूठे किस्से शुरू किये गए! जबकि खुद अकबरनामा और जहांगीर नामा के अनुसार ऐसा कुछ नहीं था!

18वीं सदी में मरियम को हरखा बाई का नाम देकर हिन्दू बता कर उसके मान सिंह की बेटी होने का झूठा पहचान शुरू किया गया। फिर 18 वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब "एनालिसिस एंड एंटीक्स ऑफ़ राजस्थान" में मरियम से हरखा बाई बनी इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया!

और इस तरह ये झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया कि आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है और जन जन की जुबान पर ये झूठ सत्य की तरह आ चुका है!

और इसी झूठ का सहारा लेकर राजपूतों को नीचा दिखाने की कोशिश जाती है! जब भी मैं जोधाबाई और अकबर के विवाह प्रसंग को सुनता या देखता हूं तो मन में कुछ अनुत्तरित सवाल कौंधने लगते हैं!

आन, बान और शान के लिए मर मिटने वाले शूरवीरता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं??
हजारों की संख्या में एक साथ अग्नि कुंड में जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती हैं???? जोधा और अकबर की प्रेम कहानी पर केंद्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक मेरे मन की टीस को और ज्यादा बढ़ा देते हैं!

अब जब यह पीड़ा असहनीय हो गई तो एक दिन इस प्रसंग में इतिहास जानने की जिज्ञासा हुई तो  सोशल साइट के मित्र से अकबर के दरबारी 'अबुल फजल' द्वारा लिखित 'अकबरनामा' मांग  कर पढ़ने के लिए ले आया, उत्सुकतावश उसे एक ही बैठक में पूरा पढ़ डाला । पूरी किताब पढ़ने के बाद घोर आश्चर्य तब हुआ, जब पूरी पुस्तक में जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं मिला!

मेरी आश्चर्य मिश्रित जिज्ञासा को भांपते हुए मेरे मित्र ने एक अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ 'तुजुक-ए- जहांगिरी' जो जहांगीर की आत्मकथा है उसे दिया! इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहांगीर ने अपनी मां जोधाबाई का एक भी बार जिक्र नहीं किया!

हां कुछ स्थानों पर हीर कुँवर और हरका बाई का जिक्र जरूर था। अब जोधाबाई के बारे में सभी ऐतिहासिक दावे झूठे समझ आ रहे थे । कुछ और पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के पश्चात हकीकत सामने आयी कि “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोई जिक्र या नाम नहीं है!

इस खोजबीन में एक नई बात सामने आई, जो बहुत चौंकाने वाली है! इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में 'रुकमा' नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी, जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी!

रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को 'रुकमा-बिट्टी' नाम से बुलाते थे आमेर की महारानी ने रुकमा बिट्टी को 'हीर कुँवर' नाम दिया चूँकि हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ, इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भांति परिचित थी!

राजा भारमल उसे कभी हीर कुँवरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे। राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी परसियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुँवर का विवाह अकबर से करा दिया, जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी नाम दिया!

चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था, इसलिये ऐतिहासिक ग्रंथों में हीर कुँवरनी को राजा भारमल की पुत्री बता दिया! जबकि वास्तव में वह कच्छवाह राजकुमारी नहीं, बल्कि दासी-पुत्री थी!

राजा भारमल ने यह विवाह एक समझौते की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था। इस विवाह के विषय में अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है!

(“ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس”) हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें 
 संदेह है, इसी तरह ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में एक भारतीय मुगल शासक का विवाह एक परसियन दासी की पुत्री से करवाए जाने की बात लिखी है!

'अकबर-ए-महुरि

यत' में यह साफ-साफ लिखा है कि (ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں) 

हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है, क्योंकि निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नहीं थे और ना ही हिन्दू गोद भराई की रस्म हुई थी!

सिक्ख  गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के विषय में कहा था कि क्षत्रियों ने अब तलवारों और बुद्धि दोनों का इस्तेमाल करना सीख लिया है, मतलब राजपूताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धि का भी काम लेने लगा है!

17वी सदी में जब 'परसी' भारत भ्रमण के लिये आये तब अपनी रचना ”परसी तित्ता” में लिखा “यह भारतीय राजा एक परसियन वैश्या को सही हरम में भेज रहा है अत: हमारे देव (अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें"!

भारतीय राजाओं के दरबारों में राव और भाटों का विशेष स्थान होता था, वे राजा के इतिहास को लिखते थे और विरदावली गाते थे उन्होंने साफ साफ लिखा है-

गढ़ आमेर आयी तुरकान फौज ले ग्याली पसवान कुमारी ,राण राज्या राजपूता ले ली इतिहासा पहली बार ले बिन लड़िया जीत! (1563 AD)

मतलब आमेर किले में मुगल फौज आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर ले जाती है! हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत 1563 AD!

ये ऐसे कुछ तथ्य हैं, जिनसे एक बात समझ आती है कि किसी ने जानबूझकर गौरवशाली क्षत्रिय समाज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की और यह कुप्रयास अभी भी जारी है......

लेकिन अब यह षड़यंत्र अधिक दिन नहीं चलेगा।
सत्य के साथ सदैव चले यही है सनातनियों की पहचान।

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

रोचक जातक, सामाजिक व सनातन कथाएं 002

24 नवंबर 1675 की तारीख गवाह बनी थी, हिन्दू के हिन्दू बने रहने की !!

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दोपहर का समय और जगह चाँदनी चौक दिल्ली लाल किले के सामने जब मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हुए पर बिल्कुल शांत बैठे थे !
 लोगो का जमघट !!  और सबकी सांसे अटकी हुई थी ! शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुरजी इस्लाम कबूल कर लेते हैं, तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होगा, बिना किसी जोर जबरदस्ती के !
औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था . समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडिग बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था तो दूसरी तरफ एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगा था ! हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था। खुद चल के आया था औरगजेब, लालकिले से निकल कर सुनहरी मस्जिद के काजी के पास,उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देने का फतवा निकलता था ! वो मस्जिद आज भी है !
गुरुद्वारा शीष गंज, चांदनी चौक, दिल्ली !  के पास पुरे इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न था ! आखिरकार जब इस्लाम कबूलवाने की जिद्द पर इस्लाम ना कबूलने का हौसला अडिग रहा तो जल्लाद की तलवार चली  और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो गया ।
ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदलने से रोक दिया ।  
हिंदुस्तान में हिन्दुओं के अस्तित्व में रहने का दिन !!  सिर्फ एक हाँ होती तो यह देश हिन्दुस्तान नहीं होता  !
गुरु तेग बहादुर जी  जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की  उनका अदम्य साहस  भारतवर्ष कभी  नही भूल सकता ।
कभी  एकांत में बैठकर सोचिएगा अगर गुरु तेग बहादुर जी अपना बलिदान न देते तो हर मंदिर की जगह एक मस्जिद होती और घंटियों की जगह अज़ान सुनायी दे रही होती।

24 नवम्बर का यह इतिहास सभी को पता होना चाहिए  !
वाहे गुरु जी का खालसा !!
वाहे गुरूजी की फ़तेह !!💐💐🙏🙏🚩

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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
।।जय जय श्री राधे।।
।।जय जय श्री राम।।
।।हर हर महादेव।।

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शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

रोचक जातक, सामाजिक व सनातन कथाएं 001

रोचक जातक, सामाजिक व सनातन कथाएं
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शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के इन मंत्रों का करें जाप...

आज 'शुक्रवार' का दिन देवी लक्ष्मी जी को बेहद प्रिय है। इस दिन ख़ास तौर से मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। विष्णुप्रिया लक्ष्मी मां को धन-वैभव की देवी कहा जाता है। मान्यता है कि शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा आदि करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बनाती हैं। धार्मिक मान्यता है कि नियमित रूप से जो शुक्रवार के दिन वैभव लक्ष्मी के व्रत रखता है, उसे जीवन भर धन-संबंधी किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। माना जाता है कि शुक्रवार के दिन अगर मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप किया जाए, तो मां बहुत जल्द प्रसन्न होती हैं, और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। मां लक्ष्मी को इन मंत्रों से करें प्रसन्न:-

मां लक्ष्मी का बीज मंत्र
ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।
धार्मिक मान्यता है कि मां लक्ष्मी का आर्शीवाद पाने के लिए बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। कहते हैं बीज मंत्र का जाप सदैव कमल गट्टे की माला से ही किया जाता है।

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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
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